जो कुछ सुना जाता है उस पर विश्वास न हो तो सुनने का विशेष अर्थ नहीं हो सकता. गहरे विश्वास के साथ सुनी हुई बात ही दिल को छू सकती है. विश्वास के साथ आवश्यक तत्व है आचरण. तत्व को सुन लिया उस पर विश्वास भी कर लिया पर आचरण नहीं किया तो कोई परिणाम नहीं आ सकेगा. भोजन सामने पड़ा है. मन में दृढ़ विश्वास है कि भोजन करने से भूख समाप्त हो जाएगी पर जब तक भोजन नहीं किया जाता है भूख कैसे मिटेगी. धर्म भी जब तक व्यक्ति के आचरण का विषय नहीं बनता है उससे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आ सकता। श्रुति श्रद्धा और आचरण तीनों हों फिर भी धर्म का असर न हो यह हो ही नहीं सकता। 
श्रुति और श्रद्धा के साथ सम्यक आचरण हो जाए तो धर्म के प्रभाव की निश्चित गारंटी दी जा सकती है। स्थिति आज इससे भिन्न है। लोगों का विश्वास धर्म पर नहीं चमत्कार पर है। संतों के दर्शन करें उनसे मंगल पाठ सुने इससे संतति-लाभ हो जाए व्यापार में लाभ हो जाए वर्षों से उलझा हुआ काम सुलझ जाए तो संत अच्छे हैं अन्यथा उनके पास जाने की इच्छा नहीं होती। ऐसे चमत्कारों में मेरा कतई विश्वास नहीं है। इन चमत्कारों ने धर्म और अध्यात्म का जितना अहित किया है शायद ही किसी ने किया हो। चमत्कारों में ही अपनी साधना की सफलता समझने वाला साधक साधना के योग्य हो ही नहीं सकता। चमत्कार में मेरा विश्वास नहीं है इसलिए मैं आपको कोई दिव्य विभूति देने का दावा नहीं करता। मैं अति कल्पना भी नहीं करता कि हर मनुष्य में देवत्व जग जाए।