सैन फ्रांसिस्को । दोपहर के कुछ मिनटों में सूरज किसी भी चीज का शैडो नहीं बनाएगा! ये घटना एक नहीं, बल्कि उष्णकटिबंधीय इलाकों में सालाना दो बार घटती है! ये कहना है एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया का। प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस दौरान सूर्य सिर के ठीक ऊपर अपने उच्चतम बिंदु पर होगा! इससे होता ये है कि सूरज की किरणें छाया तो बनाती हैं, लेकिन वो किसी इंसान या ऑब्जेक्ट के ठीक नीचे होता है! इससे ऐसा लगता है कि छाया बनी ही नहीं होगी, जबकि वो अंडर द ऑब्जेक्ट रहती है। ये हमेशा कर्क और मकर रेखा के बीच आने वाले इलाकों में दिखता है। इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए, सूर्य का झुकाव उत्तरायण और दक्षिणायन दोनों के दौरान उनके अक्षांश के बराबर होगा। बेंगलुरु ऐसा ही एक क्षेत्र है। सोमवार को ओडिशा के भुवनेश्वर में भी जीरो शैडो डे देखा जा चुका। वैसे असल में ये घटना केवल एकाध सेकंड या इससे भी कम होती है लेकिन इसका असर डेढ़ मिनट तक रह सकता है।धरती का घूर्णन अक्ष सूर्य की तरफ लगभग 23.5 डिग्री पर झुका हुआ है। 
इससे मौसम बनते-बदलते हैं। मतलब सूरज, दिन के अपने उच्चतम पॉइंट पर, भूमध्य रेखा के 23.5 डिग्री दक्षिण से भूमध्य रेखा (उत्तरायण) के 23.5 डिग्री उत्तर की ओर जाएगा, और एक साल में फिर से (दक्षिणायन) लौट आएगा। इसी घूर्णन के चलते, एक जीरो शैडो डे तब आता है, जब सूर्य उत्तर की तरफ बढ़े, और दूसरा तब आता है, जब सूर्य दक्षिण की तरफ जाए। यही वजह है कि साल में दो बार जीरो शैडो डे पड़ता है।  सूरज की किरणें कभी भी किसी ऑब्जेक्ट, चाहे वो इंसान हो, जानवर या कोई वस्तु, उसे पार नहीं कर पाती। ऐसे में जब किरणें नीचे की तरफ आती हैं तो ऑब्जेक्ट से टकराती तो हैं, लेकिन उसे भेद नहीं पातीं, तब रुकी हुई रोशनी जितने हिस्से पर परछाई-नुमा अंधेरा छा जाता है। यही शैडो है। तो एक तरह से रोशनी की कमी है, जो परछाई कहलाती है।
वैसे तो लगभग हर चीज की परछाई बनती है, लेकिन आग की नहीं होती। इसपर एक्सपर्ट दो तरह की बातें कहते हैं। एक तबके के अनुसार, आग खुद में एक रोशनी है। ऐसे में जब उसपर दूसरी रोशनी पड़ती है तो वो आरपार हो जाती है। यही वजह है कि आग की परछाई नहीं दिखती। लेकिन इसका एक दूसरा पक्ष भी है। अगर हम एक रोशनी को, उससे कहीं ज्यादा रोशनी की तरफ ले जाएं तो कम प्रकाश वाले ऑब्जेक्ट की परछाई बनेगी।