भोपाल । मप्र में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर हर साल अरबों रूपए का बजट स्वाहा किया जाता है, लेकिन संविधाएं पूरी तरह बदहाल हैं। यही नहीं  राजधानी के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की सुविधाओं के नाम पर पोर्टल बनाने के लिए करोड़ों रूपए का खेल किया गया है। आलम यह है कि अस्पतालों में सुविधाएं तो फेल हैं ही, पोर्टल के नाम पर करोड़ों का खेल लगातार चल रहा है। जबकि केंद्र सरकार ने अस्पतालों के लिए पोर्टल पहले से ही बना रखा है। दरअसल, मुफ्त की कोई भी चीज पसंद नहीं करते। यही वजह है कि अस्पतालों का कामकाज निर्धारित करने के लिए केन्द्र के मुफ्त के पोर्टल का उपयोग नहीं करना चाहते। शहर के सरकारी अस्पतालों ने मरीजों की सुविधा का हवाला देकर खुद के सॉफ्टवेयर के नाम पर करीब 6 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। हमीदिया से लेकर एम्स और अन्य सरकारी अस्पतालों ने राशि तो खर्च कर दी, लेकिन अपने स्तर पर जो पोर्टल तैयार कराए वे फिलहाल तो काम नहीं कर रहे।

अस्पतालों में समस्याओं की भरमार
केंद्र और राज्य सरकार की तमाम कोशिश के बावजुद शहर के सरकारी अस्पताओं में समस्याओं की भरमार है। अस्पतालों में इलाज के लिए लंबी-लंबी कतारें लगी रहती है। दवाओं और जांच में अब भी कई घंटे बर्बाद हो रहे हैं। पेपरलैस वर्किंग की जगह अभी भी पूरा काम कागजों में ही हो रहा है। मरीजों को दवा पर्ची से लेकर जांच फाइल सब संभालना पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिरकार पोर्टल पर इतना खर्च क्यों किया गया। जानकारी के अनुसार हमीदिया में तीन साल पहले हेल्थ इंफॉर्मेशन एंड मैनेजमेंट सिस्टम को लागू किया था। दावे हुए थे कि पूरे काम ऑनलाइन होंगे। यही नहीं इस सॉफ्टवेयर को सरकारी एजेंसी 25 लाख में तैयार कर रही थी, लेकिन प्रबंधन ने निजी एजेंसी को 2.5 करोड़ रुपए दे दिए। इसके बावजूद अब तक सॉफ्टवेयर तैयार नहीं है। वहीं एम्स भोपाल में भी सॉफ्टवेयर के निर्माण के दौरान फर्जीवाड़ा हुआ। एम्स प्रबंधन ने अपने सॉफ्टवेयर निर्माण के लिए सरकारी एजेंसी को 86 लाख रुपए जारी किए, लेकिन चार साल तक सॉफ्टवेयर का निर्माण नहीं हो पाया। इसके बाद एम्स मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने निजी एजेंसी को सॉफ्टवेयर का ठेका दे दिया। जेपी अस्पताल में भी सॉफ्टवेयर तैयार किए गए। उस दौरान यह प्रचारित किया गया कि प्रदेश का पहला अस्पताल जहां मिलेगी कतारों से आजादी, लेकिन स्थिति अब भी वैसी ही है। वहीं गैस राहत विभाग के सभी अस्पतालों और बीएमएचआरसी में भी सॉफ्टवेयर तैयार किए गए, जो अब तक अधूरे ही हैं।

एम्स को पेपरलैस करने की तैयारी
इन सबके बावजूद एम्स अस्पताल एक बार फिर नए सॉफ्टवेयर को तैयार करा रहा है। एम्स भोपाल स्वास्थ्य नाम के एक को लेकर दावा किया जा रहा है कि इससे पूरा एम्स पेपरलैस तो होगा। जेपी अस्पताल के पूर्व अधीक्षक डा. एसके सक्सेना का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता सुधारने के अलावा सभी काम होते हैं। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है, लेकिन पद भरने पर फोकस नहीं है। अस्पतालों मे व्यवस्थाएं नहीं है, ऐसे हालात नहीं है कि नए डॉक्टर आना चाहें। पर्याप्त दवाएं नहीं है, लेकिन विभाग इन सब को छोड़ सॉफ्टवेयर जैसे गैर प्राथमिकता वाले कामों पर फोकस कर रहा है।